जमशेदपुर: साकची में मोहर्रम की 7 तारीख को मजलिस के बाद अलम का जुलूस निकला। यह जुलूस स्ट्रेट माइल रोड स्थित हुसैनी मिशन के इमामबाड़े से निकलकर साकची गोल चक्कर पहुंचा। जुलूस में शामिल आजदार नौहा खानी और सीनाजनी कर रहे थे। नौहा शाकिर हुसैन, आशकार हुसैन, खुर्शीद आदि ने पढ़ा। साकची गोल चक्कर से यह जुलूस वापस
हुसैनी मिशन के इमामबाड़े पहुंच कर खत्म हुआ। इससे पहले हुसैनी मिशन के इमामबाड़े में मजलिस हुई। मजलिस को शिया जामा मस्जिद के पेश इमाम जकी हैदर करारवी ने खिताब फरमाया। मजलिस में उन्होंने हजरत कासिम के मसाएब पढ़े। मौलाना जकी हैदर करारवी ने मसाएब में पढ़ा कि हजरत कासिम इमाम हसन अलैहिस्सलाम के बेटे और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के भतीजे थे। उन्होंने जब देखा कि एक के बाद एक लोग शहादत दे रहे हैं तो हज़रत क़ासिम भी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पास गए और शहादत की इजाजत मांगी। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने जब समझाया तो हज़रत क़ासिम वापस अपनी मां के पास गए। तभी उन्हें याद आया कि उनके बाबा ने उनके बाजू पर एक तावीज बांधी है और कहा है कि जब चचा पर कोई बड़ी मुसीबत आए तब इस तावीज को खोलना। बात याद आते ही हजरत कासिम ने तावीज खोली और उसे अपने चाचा इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पास ले गए। तावीज में लिखा था कि कासिम जब तुम्हारे चचा दुश्मनों के नरगे में घिरे हों। उन पर अपनी जान कुर्बान करना। तावीज देखकर इमाम हुसैन ने हजरत कासिम को जंग की इजाजत दे दी। हजरत कासिम मैदान में गए और शहीद हुए। उनकी लाश घोड़े के टोपों से पामाल हो गई। मसाएब सुनकर अजादार जारो कतार रोए।
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