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Jamshedpur: टेल्को वर्कर्स यूनियन ने बाई सिक्स विवाद में चल रही सुनवाई प्रक्रिया में खुद को शामिल करने की उठाई मांग, श्रम आयुक्त को लिखी चिट्ठी

जमशेदपुर: टेल्को वर्कर्स यूनियन श्रम आयुक्त को पत्र लिखकर खुद को बाई सिक्स विवाद में चल रही सुनवाई प्रक्रिया में शामिल करने की मांग उठाई है। पत्र में लिखा गया है कि बिना टेल्को वर्कर्स यूनियन को शामिल किए अगर कोई समझौता होता है, तो यह विवाद न्यायिक रूप से बना रहेगा। यूनियन ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णय का हवाला भी दिया है। टाटा मोटर्स में बाई सिक्स कर्मियों को स्थाई करने का विवाद गहरा गया है। इस विवाद की शुरुआत बाई सिक्स कर्मी अफसर जावेद द्वारा डीएलसी के सामने अपनी मांग रखने से शुरू हुई है। उनकी मांग है कि जब से उनकी 240 दिन की ड्यूटी पूरी हुई है, तभी से उन्हें परमानेंट माना जाए। उनकी इस मांग का टेल्को वर्कर्स यूनियन ने समर्थन किया है और मांग की है कि बाई 6 कर्मियों को उनकी 240 दिन की ड्यूटी पूरी होने के दिन से ही परमानेंट मानते हुए उस दिन के पेमेंट और अस्थाई वेतन के अंतर की बकाया राशि 18% ब्याज के साथ दी जाए। अफसर जावेद की इस मांग पर जब डीएलसी ने कोई सुनवाई नहीं की तो उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। अफसर जावेद ने कोर्ट में बताया था कि वह व्यक्तिगत हैसियत से यह मांग रख रहे हैं। उसके बाद हाई कोर्ट के आदेश पर अफसर जावेद ने डीएलसी को पत्र लिखकर रात में हाईकोर्ट के आदेश से अवगत कराया। इसके बाद डीएलसी ने टाटा मोटर्स को पत्र लिखा और बाई सिक्स कर्मियों को परमानेंट करने की योजना 3 महीने के अंदर बताने के निर्देश दिए। बताते हैं कि व्यक्तिगत रूप से उठाया गया विवाद औद्योगिक विवाद नहीं माना जाता। इसलिए जब टेल्को वर्कर्स यूनियन ने इस विवाद का समर्थन देने का ऐलान किया तो यह औद्योगिक विवाद बन गया और इस विवाद को वैधानिक अधिकार प्राप्त हो गया। टेल्को वर्कर्स यूनियन का मानना है कि समझौते की प्रक्रिया में उसे शामिल करना। अब कानूनी अनिवार्यता है। साथ ही इस मामले के एक पक्षकार अफसर जावेद को भी समझौते में शामिल किए बिना कोई हल नहीं निकाला जा सकता। टेल्को वर्कर्स यूनियन के उपाध्यक्ष और सदस्य हर्षवर्धन का मानना है कि डीएलसी या एलसी को निर्धारित कानूनी प्रक्रिया के तहत ही काम करना है। इससे बाहर जाकर काम नहीं करना है। समझौते में शामिल किसी पक्ष के राजी नहीं होने की स्थिति में मामले को लेबर कोर्ट या ट्रिब्यूनल में भेजना होगा। इसके अलावा, कोई भी निर्णय डीएलसी या एलसी के अधिकार क्षेत्र से बाहर होगा। जो मांग का हिस्सा नहीं है उस पर किसी भी प्रकार का निर्देश गैर कानूनी होगा। जो वास्तविक पक्षकार नहीं हैं, उनसे किसी भी तरह की बात करना गैरकानूनी होगी। इस मामले में टाटा मोटर्स की कथित फर्जी यूनियन का कोई रोल नहीं है। इसलिए नियमानुसार उसे समझौते की इस प्रक्रिया में नहीं शामिल करना चाहिए। टेल्को वर्कर्स यूनियन के सदस्य हर्षवर्धन का कहना है कि फर्जी यूनियन को समझौते की प्रक्रिया में शामिल करना साजिश की तरफ इशारा करती है।

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