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सरयू के जदयू में आने के बाद जमशेदपुर पूर्वी सीट की सियासत में खलबली, जानें क्या होगा रघुवर एंड टीम का

जमशेदपुर : भारतीय जनतंत्र मोर्चा के विधायक सरयू राय राजनीति के चाणक्य कहे जाते हैं। उन्होंने जदयू को ज्वाइन कर इसे साबित भी कर दिया है। जमशेदपुर पूर्वी सीट पर अपनी ढीली पकड़ को मजबूत बनाने के लिए उन्होंने जो दांव चला उससे उनके भाजपाई दुश्मन चित हो गए हैं। सरयू राय ने न केवल जमशेदपुर पूर्वी में अपनी स्थिति को मजबूत कर लिया है। बल्कि, उनका विधानसभा में पहुंचना भी आसान हो गया है। जमशेदपुर पूर्वी न सही जमशेदपुर पश्चिमी से टिकट हासिल कर वह आसानी से विधानसभा पहुंचने की कवायद में जुट गए हैं। अब लोगों की निगाहें इस बात पर टिक गई हैं कि भाजपा कोल्हान में जदयू को कौन सी सीट देगी। इस सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की टीम का क्या होगा। रघुवर दास अब आगे कौन सी चाल चलेंगे जिससे वह सरयू राय के लिए विधानसभा का रास्ता रोक सकें। या फिर इस लड़ाई में सरयू सब पर भारी पड़ेंगे।
रघुवर की राह में खड़ी कर दी मुश्किल
सरयू राय ने जदयू में जाकर पूर्व मुख्यमंत्री और ओडिशा के राज्यपाल रघुवर दास के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है। जमशेदपुर पूर्वी सीट रघुवर दास की पारंपरिक सीट है। यहां से वह साल 1995, 2000, 2005, 2009 और 2014 में पांच बार लगातार चुनाव जीत कर विधायक बने थे। पिछले बार सीट हार जाने के बाद इस बार के चुनाव में वह यहां से फिर अपनी धाक जमाना चाहते हैं। पहले चर्चा थी कि वह ओडिशा के राज्यपाल के पद से इस्तीफा देकर यहां से चुनाव लड़ेंगे। मगर, बाद में उनकी पत्नी, बहू और फिर किसी अन्य खास साथी के चुनाव लड़ने की खबरें आ रही थीं। कुल मिला कर रघुवर दास चाहते थे कि जमशेदपुर पूर्वी से जो भी विधायक बने वह उनका खास हो। सरयू राय उन्हें हर बार चुनौती देते रहे हैं। अब सरयू ने जो चाल चली है उससे रघुवर लाबी चारों खाने चित हो गई है।
जग जाहिर है सरयू व रघुवर की प्रतिद्वंद्विता
साल 2019 के चुनाव में जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा से तत्कालीन मुख्यमंत्री रहे रघुवर दास को 15 हजार 833 वोटों से हरा दिया था। वह निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़े थे। इसकी वजह यह थी कि रघुवर दास ने सरयू का राजनीतिक कॅरियर खत्म करने के लिए एक चाल चली थी। जमशेदपुर पश्चिम से भाजपा का उनका टिकट काट दिया था। इसी का जवाब देने के लिए सरयू राय जमशेदपुर पूर्वी से निर्दलीय लड़ गए थे और उन्हें भाजपाइयों की भी सहानुभूति मिली थी। रघुवार के कई सिपाहसालार सरयू के साथ चले गए थे। मगर, बाद में रघुवर ने इनमें से कइयों को अपने पाले में कर लिया है।

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