न्यूज़ बी: यमन के खिलाफ अमेरिका ने ऑपरेशन ‘प्रास्पेरिटी गार्जियन’ का ऐलान किया है। यमन के हौसी सेना को कंट्रोल में करने के लिए बने अमेरिकी नौसेना गठबंधन में नार्वे, यूनाइटेड किंगडम, बहरैन, कनाडा,फ्रांस, इटली, नीदरलैंड्स और सेशेल्स समेत कई देश शामिल हुए हैं। लेकिन सऊदी अरब, मिस्र और संयुक्त अरब अमीरात ने इस गठबंधन में शामिल होने से इनकार कर दिया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह अमेरिका के लिए बहुत बड़ा झटका है। सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के अमेरिकी नौसेना गठबंधन में शामिल नहीं होने को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के इन दोनों देशों के दौरे से भी जोड़ कर देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि रूसी राष्ट्रपति सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के प्रमुखों को ये बात समझाने आए थे कि वह अमेरिकी हमला होने पर यमन से न उलझे और अमेरिका के किसी भी सैनिक गठबंधन में शामिल नहीं हो। वहीं यह भी माना जा रहा है कि यह अमेरिका की कूटनीतिक चाल भी हो सकती है कि वह सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को अपने गठबंधन में ना ले। क्योंकि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में अमेरिका के कई हित हैं। उसकी कई कंपनियां इन दोनों देशों में हैं। अगर यह दोनों देश अमेरिका के नौ सैनिक गठबंधन में शामिल होते हैं, तो हौसी सेना युद्ध शुरू होने पर सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में अमेरिका के इन हितों को निशाना बनाने से नहीं चूकेगी। लेकिन इन दोनों देशों के गठबंधन में शामिल नहीं होने से सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में अमेरिका के यह हित सुरक्षित रह सकते हैं और हौसी सेना को इन ठिकानों पर हमला कर करने का कोई बहाना नहीं मिलेगा।
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