सरफराज हुसैन, रांची : झारखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र के चौथे दिन 1932 आधारित स्थानीय नीति का विधेयक एक दफा फिर सदन से पारित कर दिया गया है।सदन से पारित करने के बाद इस विधेयक को राज्यपाल को भेज दिया गया है। पिछले साल भी 11 नवंबर को यह विधेयक सदन से पारित कर राज्यपाल के पास भेजा गया था। तब इसे राज्यपाल ने कुछ सुझावों के साथ सरकार और विधानसभा को वापस लौटा दिया था। दोबारा सदन के पटल पर 1932 का विधेयक रखते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्यपाल की मंशा पर सवाल उठाए। सीएम हेमंत सोरेन ने कहा कि राज्यपाल को संशोधन का अधिकार नहीं है। 1932 झारखंड के लोगों की पहचान से जुड़ा हुआ है। सीएम ने भाजपा और आजसू पर निशाना साधा और कहा कि सदन के अंदर विपक्ष समर्थन तो देता है, मगर राजभवन जाकर राज्यपाल का कान भर देता है। 20 साल से ये लोग (विपक्ष) सूबे के लोगों को गुमराह कर रहे हैं।
स्थानीयता की परिभाषा को ठहराया जायज
सीएम हेमंत सोरेन ने कहा कि जहां तक राज्यपाल के सुझाव की बात है, अटॉर्नी जनरल ने स्थानीयता की परिभाषा को जायज ठहराया है। राज्य के प्रयासों को भी सराहा है। चूंकि यह डबल इंजन की सरकार नहीं है, इसीलिए विपक्ष के द्वारा हर काम में अड़ंगा लगाया जा रहा है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि 1932 के प्रावधान पर कोई कानूनी अड़चन ना आए। कोर्ट में इसे चुनौती ना दी जा सके। इसके लिए इसे 9वीं अनुसूची में डालने का प्रावधान किया गया। अटॉर्नी जनरल का इस प्रमुख बिंदु पर कोई सुझाव नहीं है। झारखंड के महाधिवक्ता ने कहा है कि इस विधेयक को 9वीं अनुसूची में डाला जा सकता है। इसीलिए हूबहू इस विधेयक को पारित किया जाए।