Jamshedpur (Jharkhand) : (Jamshedpur Rail Buldozer) जमशेदपुर के सुंदरनगर में मंगलवार दोपहर का वक्त अचानक अफरा-तफरी भरा हो गया, जब रेलवे प्रशासन ने पुलिस बल के साथ मिलकर रेलवे फाटक के पास वर्षों से बसे झोपड़पट्टी इलाके को खाली कराने के लिए बुलडोजर चलवा दिया। इस कार्रवाई में कुल 24 घर तोड़े गए, जिनमें रहने वाले गरीब परिवार अब खुले आसमान के नीचे आ गए हैं।(Jamshedpur Rail Buldozer)
रेलवे प्रशासन ने दावा किया है कि अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया पूरी तरह कानूनी नोटिस के तहत की गई है। मगर स्थानीय निवासियों का कहना है कि उन्हें मुआवजे या वैकल्पिक आवास की कोई सुविधा नहीं दी गई। लोगों का यह भी कहना है कि केंद्र और राज्य सरकार की ओर से चल रही आवास योजनाओं के तहत उन्हें घर मिल सकता था, लेकिन अधिकारियों ने कोई प्रयास नहीं किया।
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निर्मला देवी, जो बीते 15 वर्षों से यहां रह रही थीं, ने कहा, “हमारे पास बिजली मीटर, आधार कार्ड और राशन कार्ड जैसे सभी दस्तावेज हैं, लेकिन फिर भी बिना पूर्व व्यवस्था के हमें बेघर कर दिया गया।” एक अन्य निवासी रामजी यादव ने कहा, “हमारे लिए न सरकार है, न प्रशासन – हमारा कोई मसीहा नहीं।”
Jamshedpur Rail Buldozer : दोपहर 12:30 बजे शुरू हुआ अभियान

Jamshedpur Rail Buldozer: बस्ती पर चल रहा बुल्डोजर
दोपहर करीब 12:30 बजे रेलवे की टीम जब सायरन बजाकर मौके पर पहुंची, तो महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों में खौफ फैल गया। लोग जो कुछ हाथ में आया, उसे लेकर घरों से बाहर निकलते नजर आए। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, पूरे इलाके में चीख-पुकार और भय का माहौल था।
कानून के जानकार नितिन श्रीवास्तव का कहना है कि किसी भी अतिक्रमण को हटाने से पहले उचित मुआवजा और पुनर्वास देना जरूरी होता है। अगर ऐसा नहीं किया गया, तो यह सीधे तौर पर मानवाधिकार का उल्लंघन है। पीड़ित परिवार हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में इंसाफ की गुहार लगा सकते हैं।
रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि यह जमीन रेलवे की है और इस पर लंबे समय से अवैध कब्जा था। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि पुनर्वास और मुआवजा राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है। जिला प्रशासन की ओर से फिलहाल कोई ठोस प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है।
इस पूरे घटनाक्रम पर राजनीतिक प्रतिक्रिया भी सामने आई है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता मनोज महतो ने केंद्र सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा, “गरीबों को उजाड़ने की यह सजा सरकार को चुनाव में मिलेगी।” स्थानीय सामाजिक संगठनों ने भी इसका विरोध करते हुए पीड़ितों के लिए राहत और पुनर्वास की मांग की है। संगठनों का कहना है कि जब रेलवे केंद्र सरकार के अधीन है, तो भाजपा के नेताओं को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए।