न्यूज़ बी रिपोर्टर , जमशेदपुर : ऑल इंडिया माइनॉरिटी सोशल वेलफेयर फ्रंट के प्रवक्ता हाजी सरफराज हुसैन ने कहा है कि समान नागरिक संहिता अव्यवहारिक, अनावश्यक और हानिकारक है। उन्होंने कहा कि वह सरकार से मांग करते हैं कि इस अनावश्यक कार्य को करने में संसाधन बर्बाद ना करें। समान नागरिक संहिता समाज में फूट का कारण बनेगी। सरफराज हुसैन ने कहा कि हमारा देश बहु धार्मिक, बहु सांस्कृतिक और बहु भाषाई देश है। यही विविधता हमारे देश की खास पहचान है। उन्होंने कहा कि देश के संविधान निर्माताओं ने इसी विशिष्टता को ध्यान में रखते हुए संविधान में अनुच्छेद 25, 26 में धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता को मौलिक अधिकार के रूप में संरक्षण दिया है। इसी तरह अनुच्छेद 371 (ए) और 371(जी ) में उत्तर पूर्वी राज्यों के आदिवासियों को गारंटी दी गई है कि संसद ऐसा कोई भी कानून नहीं बनाएगी जो उनके फैमिली कानून को निरस्त करता हो। फ्रंट ने साफ कहा है कि शरीयत के कानून कुआरान और सुन्नत से लिए गए हैं। इसमें बदलाव करने का अधिकार मुसलमानों को भी नहीं है। इसी तरह अन्य धार्मिक और सांस्कृतिक समूह भी अपने पारंपरिक और सांस्कृतिक मूल्यों को प्रिय रखते हैं। इसलिए सरकार या किसी भी शुरू से पर्सनलला में कोई भी तब्दीली नहीं की जा सकती। अगर पर्सनल ला में तब्दीली होती है तो इससे अराजकता और अव्यवस्था बढ़ेगी। सरफराज हुसैन ने कहा कि जो लोग यह तर्क देते हैं कि समान नागरिक संहिता एक संवैधानिक आवश्यकता है तो उन्हें यह बताना चाहता हूं कि अनुच्छेद 44 भारत के संविधान के दिशानिर्देशों के अध्याय चार में निहित है। इसको लागू करना अनिवार्य नहीं है। जबकि दिशा निर्देशों के तहत कई दिशा निर्देश सूचीबद्ध हैं, जो जनता के हित में है। लेकिन सरकार को इसके कार्यान्वयन की कोई चिंता नहीं है। इसके विपरीत धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता की स्थिति एक मौलिक अनिवार्य अधिकार की श्रेणी में आता है। सरफराज हुसैन ने लोगों से अपील की सभी लोग विधि आयोग की प्रश्नावली का जवाब जरूर दें और उन्हें बताएं कि यह व्यवहारिक और हानिकारक है। मुसलमान अपनी शरीयत के मामले में कोई समझौता नहीं कर सकता।
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