न्यूज़ बी रिपोर्टर, जमशेदपुर : जमशेदपुर में गुरुवार को पैगंबर अकरम हजरत मोहम्मद मुस्तफा स के चचेरे भाई और वजीर वजा नसीम हज़रत अली अलैहिस्सलाम का शहादत दिवस पूरे अकीदत और एहतराम के साथ मनाया गया। इस मौके पर शहर के मुस्लिम इलाकों मानगो, गोलमुरी, टेल्को, शास्त्री नगर, कदमा आदि में गम की चादर फैली रही। लोग गमगीन रहे। गौरतलब है कि खलीफा और इमाम हजरत अली अलैहिस्सलाम पर 19 रमजान को ईराक में कूफा की मस्जिद में हमला किया गया था। उनके सर पर इब्ने मुलजिम नामी खारजी ने तलवार से हमला किया था। इसके बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम की 21 रमजान को शहादत हुई थी।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम का इस्लाम में काफी मर्तबा है। हजरत मोहम्मद मुस्तफा ने उनके लिए कई हदीसे फरमाई हैं। अल्लाह के नबी स ने कहा कि वह इल्म का शहर हैं और अली उसके दरवाजा। कभी कहा कि उनके अहलेबैत की मिसाल सफीना (नाव) ए नूह जैसी है। जो इसमें सवार हुआ और जिसने अहलेबैत का दामन थामा उसे निजात मिली और जो अहलेबैत अलैहिस्सलाम से दूर गया वह गुमराह हो गया। कभी फरमाया कि ऐ अली तुम्हारी मुझसे वही निस्बत है जो हारून को मूसा के साथ थी।
गदीर ए खुम के मैदान में आखरी हज के समय हजरत मोहम्मद मुस्तफा स ने फरमाया जिसका जिसका मैं मौला उसका यह अली मौला। क़ुरआने करीम में भी हजरत अली अलैहिस्सलाम की शान में आयतें नाजिल हुई हैं। मस्जिद में नमाज में रुकू की हालत में सायल (भिखारी) को अपनी अंगूठी दे दी तो सूरह मायदा की आयत नंबर 55 नाजिल हुई। इसमें कहा गया कि ऐ ईमान वालों तुम्हारा वली अल्लाह है, और उसका रसूल है और वह है जो नमाज कायम करते हैं और हालते रुकू में जकात देते हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम अहलेबैत में से थे। जिनके बारे में हजरत मोहम्मद मुस्तफा स पर यह आयत उतरी कि ए रसूल इनसे कह दो की तुम्हें रिसालत का अज्र कुछ नहीं चाहिए। बस मेरे कराबतदारों से मोहब्बत करो। सहाबा केराम ने हुजूर से पूछा तो उन्होंने फरमाया कि उनके कराबतदार हजरत अली, बीबी फातमा और इमाम हसन और हुसैन हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शान में सूरा ए अहजाब की आयत नंबर 33 भी उतरी। इसमें कहा गया कि अल्लाह चाहता है कि अहले बैत को हर तरह की नापाकी से दूर रखे और उन्हें वैसा ही पाक पाकीजा रखे जैसा उनका हक है। हजरत अली अलैहिस्सलाम की शहादत को लेकर जमशेदपुर में गुरुवार को मजलिसों का दौर चला। मानगो के जाकि नगर में इमामबारगाह हजरत अबू तालिब अलैहिस्सलाम में हुई मजलिस को मौलाना जकी हैदर ने खिताब किया। मजलिस के बाद नौहाखानी और सीनाजनी हुई। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के ताबूत निकले। अजादारों ने ताबूत की जियारत की और हजरत अली अलैहिस्सलाम की शहादत सुनकर खूब रोए।
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