मोहर्रम में गम में लिपटी शहर की फिजा, मजलिस व मातम शुरू
मुस्तफा कमाल पाशा, रांची: मोहर्रम की पहली तारीख रविवार को देश भर में मजलिस व मातम का दौर शुरू हो गया है। देश के रांची, धनबाद, लखनऊ, इलाहाबाद, मुंबई, हैदराबाद, कोलकाता, समेत सभी शहरों में मजलिस व मातम का सिलसिला शुरू हो गया है। अकीदतमंद कोरोना काल के बाद इस साल मजलिस व मातम कर पैगंबर-ए-अकरम को उनके नवासे की शहादत का पुरसा दे रहे हैं। इफ्तेखार अली बताते हैं कि मजलिस व मातम का यह सिलसिला अब नौ रबीउल अव्वल तक चलेगा। इस दौरान, सात मोहर्रम, आठ मोहर्रम, नौ मोहर्रम, 10 मोहर्रम और 12 मोहर्रम को जुलूस निकाले जाएंगे। कोरोना काल में मोमनीन मोहर्रम नहीं मना सके थे। इसलिए, इस बार पूरे अकीदत के साथ मोहर्रम की तैयारी की गई है।
कयामत का दिन होता है आशूर
आशूर का दिन यानि 10 मोहर्रम कयामत का दिन है। इस दिन इमाम हुसैन और उनके साथियों को कत्ल करने के बाद यजीद ने उनके घर के बच्चों और महिलाओं को कैद कर लिया था। आशूर का ही दिन वह दिन है जिसे लोग मोहर्रम कहते हैं। इसी दिन कर्बला में रसूल ए अकरम हजरत मोहम्मद मुस्तफा स. का कुनबा उजाड़ा गया। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके साथी इसी दिन शहीद किए गए। इस हवाले से यजीदियों ने खूब खुशी मनाई थी। मगर, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मानने वाले इस दिन को गम मनाते हैं। इस दिन मोमनीन गमजदा रहते हैं। खुशी नहीं मनाते। इस दिन ताजिया का जुलूस निकलता है और ताजिया के दफन होने के बाद शाम को शाम-ए-गरीबां की मजलिस होती है।
पढ़ा जाता है मर्सिया व नौहा
मोहर्रम में मजलिस के साथ ही मर्सिया और नौहा पढ़ा जाता है। मर्सिया कई लोग मिल कर पढ़ते हैं। हर तारीख के हवाले से अलग-अलग मर्सिया पढ़ा जाता है. सात मुहर्रम को ये मर्सिया पढ़ा जाता है- आज कासिम का दश्त-ए-मुसीबत में ब्याह है। आठ मोहर्रम का मरसिया है- जब मश्क भर कर नहर से अब्बास गाजी घर चले। नौ मोहर्रम का मर्सिया है- जब कट गए दरिया पर अब्बास के बाजू। 10 मोहर्रम का मर्सिया है- आज शब्बीर पर क्या आलम-ए-तन्हाई है। मर्सिया जुलूस में पढ़ा जाता है। कहीं अगर मजलिस में मौलाना की तकरीर नहीं हो रही है तो मर्सिया से ही मजलिस खत्म कर दी जाती है। नौहा मजलिस के बाद पढ़ा जाता है। नौहा में एक पढ़ने वाला है तो बाकी लोग मातम करते हुए नौहे के बोल को दोहराते हैं। मजलिस में सोज भी होती है। सोज मजलिस से पहले पढ़ी जाती है। मजलिस में पहले सोज पढ़ी जाती है। इसके बाद मौलाना तकरीर करते हैं और फिर नौहाखानी व सीनाजनी होती है।