एमजीएम अस्पताल में न्यूरोलॉजी नहीं होने से हो रही मौतें
अस्पताल में न्यूरोलॉजी होना जरूरी, मारपीट और दुर्घटना के शिकार गंभीर घायलों का नहीं हो पाता इलाज
इफ्तेखार अली सिद्दीकी, न्यूज़ बी रिपोर्टर : 19 मार्च को आदित्यपुर के इच्छापुर के रहने वाले किशोर करण को ट्रेन से टक्कर लग गई। सर में गंभीर चोट थी। न्यूरो का डॉक्टर नहीं होने पर एमजीएम अस्पताल में उसकी जान नहीं बचाई जा सकी। 11 मार्च को जादूगोड़ा के राखा मोड़ के पास गोडा पहाड़ निवासी रत्नाकर बाकती को बाइक ने टक्कर मार दी थी। उनके सर में गंभीर चोट लगी। एमजीएम अस्पताल से उन्हें रिम्स रेफर किया गया। लेकिन, रत्नाकर बाकती की पत्नी को यह जानकारी नहीं थी कि उन्हें एंबुलेंस कैसे मिलेगी। वह एंबुलेंस को फोन नहीं कर पाईं। ना ही किसी ने उनकी मदद की। एमजीएम अस्पताल में ही रत्नाकर बाकती ने दम तोड़ दिया। यह तो सिर्फ कुछ उदाहरण हैं। एमजीएम अस्पताल में इस तरह इलाज के अभाव में दम तोड़ने वालों की लंबी सूची है। हर दूसरे तीसरे दिन कोई न कोई परिवार एमजीएम अस्पताल में न्यूरोलॉजी विभाग नहीं होने का खामियाजा भुगत रहा है और हमारे बड़े नेता रोज इस बात पर माथापच्ची कर रहे हैं कि अगली बार वह विधायकी कैसे जीत पाएंगे।
जमशेदपुर के साकची का महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज अस्पताल (एमजीएम अस्पताल) यूं तो कोल्हान का सबसे बड़ा अस्पताल कहा जाता है। लेकिन ऐसा है नहीं। एमजीएम अस्पताल में न्यूरोलॉजी नहीं होने से मारपीट और दुर्घटना के शिकार गंभीर घायल का इलाज के अभाव में दम तोड़ देते हैं। क्योंकि, मारपीट और दुर्घटना में अधिकतर घायलों को सर में चोट होती है। जब ऐसे घायल एमजीएम अस्पताल लाए जाते हैं तो यहां डॉक्टर उनकी मरहम पट्टी ही करते हैं। इसके बाद उन्हें रिम्स या टीएमएच जाने के लिए कह दिया जाता है। बहुत से मरीज ऐसे होते हैं जो मरहम पट्टी के दौरान ही दम तोड़ देते हैं। कुछ मरीज रिम्स जाने के के लिए एंबुलेंस के इंतजार में दम तोड़ते हैं। जिन लोगों के पास पैसा होता है। वह सीधे टीएमएच जाते हैं। टीएमएच में न्यूरो सर्जन मौजूद हैं और वहां उन्हें उचित इलाज मिल जाता है। इस तरह उनकी जान बचा ली जाती है। लेकिन, गरीब लोग जिनके पास ज्यादा पैसा नहीं है। वह टीएमएच जाने से डरते हैं और सीधे एमजीएम अस्पताल पहुंचते हैं। अधिकतर घायलों के परिजन जिन्हें न्यूरो के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है। वह इस उम्मीद में एमजीएम अस्पताल आते हैं कि यहां उनकी जान बच जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं होता। एमजीएम अस्पताल में न्यूरोलॉजी की जरूरत शुरू से ही है। लेकिन किसी ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया। जबकि जमशेदपुर का झारखंड की सियासत में हमेशा दबदबा रहा है। घोड़ाबांदा के रहने वाले अर्जुन मुंडा हों या एग्रिको के रहने वाले रघुवर दास। किसी समय झारखंड की कमान उनके हाथों में रही है। जमशेदपुर पूर्वी के विधायक सरयू राय ने भी अब तक यह मुद्दा नहीं उठाया। अभी प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था संभालने वाले मंत्री बन्ना गुप्ता जमशेदपुर से ही हैं। लेकिन, कभी भी इन नेताओं ने एमजीएम अस्पताल में न्यूरोलॉजी स्थापित करने के बारे में नहीं सोचा। सामान्य व्यक्ति भी जानता है कि दुर्घटना और मारपीट के मामले में ज्यादातर घायलों को सर में चोट लगती है। ऐसे में एमजीएम अस्पताल में न्यूरोलॉजी विभाग बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। इस तरह एमजीएम अस्पताल अन्य बीमारियों और मामूली तौर से घायलों के लिए तो ठीक है। लेकिन सर पर अगर गंभीर चोट लगती है तो उसका इलाज एमजीएम में नहीं है।
108 नंबर एंबुलेंस का हाल बदहाल
झारखंड की 108 नंबर एंबुलेंस सेवा की स्थिति भी बदतर है। सर पर चोट खाए हुए गंभीर घायलों के परिजन 108 नंबर डायल करते रहते हैं। घंटों उनका नंबर नहीं लगता। नंबर लगने के बाद भी उधर से फोन उठाने वाला इधर उधर की बात करता रहता है। सवाल यह है कि क्या फोन उठाने वाले को यह नहीं पता कि घायल की स्थिति नाजुक होगी तभी उसे रेफर किया जा रहा है। वह फौरन बात करके एंबुलेंस भेजे। बल्कि उसकी जगह वह घंटों इधर उधर की बात करता है। इस तरह एंबुलेंस नहीं पहुंचने से कई लोग दम तोड़ देते हैं।
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