जमशेदपुर : टाटा मोटर्स प्रबंधन व टाटा मोटर्स वर्कर्स यूनियन पर गंभीर आरोप लग रहे हैं। टेल्को वर्कर्स यूनियन के पदाधिकारियों का कहना है कि टाटा मोटर्स वर्कर्स यूनियन की मिली भगत से टाटा मोटर्स प्रबंधन एक बार फिर बाई सिक्स कर्मियों का हक मारने में जुट गया है। इसके लिए बाई सिक्स कर्मियों को अलग-अलग विभागों में बुलाकर उनसे हस्ताक्षर कराए जा रहे हैं। साजिश यह है कि बाई सिक्स कर्मियों से हस्ताक्षर कराने के बाद अदालत में यह कहा जा सके कि बाई सिक्स कर्मी बैकवेज नहीं लेना चाहते। वह टाटा मोटर्स प्रबंधन की शर्त पर ही स्थाई होना चाहते हैं। यही नहीं इनका मकसद सभी बाई सिक्स कर्मियों को एकमुश्त परमानेंट करना नहीं है। यह धीरे-धीरे कम संख्या में बाई सिक्स कर्मियों को परमानेंट करना चाहते हैं। टेल्को वर्कर्स यूनियन के पदाधिकारियों उपाध्यक्ष आकाश दुबे और सदस्य हर्षवर्धन ने इसके खिलाफ जोरदार आवाज उठाई है। उनका कहना है कि बाई सिक्स कर्मियों पर दबाव बनाकर और उन्हें धमकी देकर उनसे हस्ताक्षर कराए जा रहे हैं। पदाधिकारियों का आरोप है कि साल 2017 में भी इसी तरह हस्ताक्षर कराने के बाद बाई सिक्स कर्मियों को परमानेंट करते समय के लो ग्रेड में डालकर उनके वेतन में भारी कटौती की गई थी। आरोप है कि यह काम भी टाटा मोटर्स वर्कर्स यूनियन की मिली भगत से हुआ था। टेल्को वर्कर्स यूनियन के पदाधिकारियों का कहना है कि जब पुणे टाटा मोटर्स के मामले में कोर्ट का फैसला आ गया है कि बाई सिक्स कर्मियों की जिस दिन 230 या 232 दिन की ड्यूटी पूरी हो गई है, उसी दिन से उन्हें परमानेंट माना जाए। इस संबंध में महाराष्ट्र हाई कोर्ट का फैसला भी है। झारखंड हाई कोर्ट ने भी इस संबंध में फैसला दिया है तो टाटा मोटर्स प्लांट इसे क्यों नहीं मान रहा। टेल्को वर्कर्स यूनियन के पदाधिकारियों का कहना है कि इससे साफ पता चलता है कि यूनियन के पास मजदूरों के हित की लड़ाई लड़ने की इच्छा शक्ति नहीं है। ना ही वह ऐसा करना चाहती है। टेल्को वर्कर्स यूनियन का कहना है कि वह बाई सिक्स कर्मियों को उनका हक दिलाने के लिए अपनी अपना संघर्ष जारी रखेगी। वहीं फैसले के खिलाफ बाई सिक्स कर्मियों में भी नाराजगी है। लेकिन, वह प्रबंधन के दबाव के सामने नहीं बोल पा रहे हैं।