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अभय की आक्रामक सियासत और जमशेदपुर पश्चिम का मैदान

अभय की आक्रामक सियासत और मंत्री की होशियारी
न्यूज़ बी रिपोर्टर, जमशेदपुर :लौह नगरी की सियासत इन दिनों गरमाई हुई है। भाजपा नेता अभय सिंह जिस अंदाज में स्वास्थ्य मंत्री पर लगातार आक्रामक हमले कर रहे हैं। उससे साफ है कि आगामी विधानसभा चुनाव में जमशेदपुर पश्चिम के सियासी अखाड़े में बन्ना गुप्ता के सामने अभय सिंह ताल ठोकेंगे। वैसे भी जमशेदपुर पश्चिम में भाजपा के पास बन्ना के मुकाबले में उतारने के लिए कोई कद्दावर नेता नहीं है। अभय सिंह को भी अपना सुस्त पड़ चुका सियासी कैरियर आगे बढ़ाना है। भाजपा के पूर्व विधायक रहे सरयू राय के पार्टी छोड़ देने के बाद इस दल के पास जमशेदपुर पश्चिम की उम्मीदवारी के लिए कोई नहीं बचा है। पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी ने आनन फानन मजबूरी में जिसे मैदान में उतारा था। वह बन्ना को चुनौती नहीं दे पाए। अभी इस खाली स्थान को अभय सिंह से भरने की रणनीति तैयार की गई है। इसीलिए जब दुर्गा पूजा की महाअष्टमी के दिन पंडालों का निरीक्षण करने निकले डीसी ने काशीडीह पूजा पंडाल के नजदीक मंदिर में भोग वितरण बंद कराया। तो भाजपा नेता अभय सिंह को स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता पर हमला करने का एक बहाना मिल गया। उन्होंने डीसी सूरज कुमार से नोकझोंक करते हुए सधे अंदाज में सरकार, जिला प्रशासन, स्वास्थ्य मंत्री और साथ में भाजपा के चुनावी हथियार मुस्लिम भावनाओं को भी निशाने पर रखा। लगभग आधे घंटे की बहस में उन्होंने खुद को हिंदुत्व का सारथी साबित कर दिया। इससे माहौल गरमाने लगा। लेकिन, मंत्री बन्ना गुप्ता ने अपने सधे हुए चिर परिचित अंदाज से आक्रामकता के इस गुब्बारे की हवा निकाल दी। स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ईगो को दरकिनार करते हुए फौरन दुर्गा पूजा समितियों से माफी मांग ली। हालांकि एक तबका लगातार अभय सिंह पर कार्रवाई की मांग कर रहा है। लेकिन सत्ता में मौजूद कोई भी मंजा हुआ नेता यह नहीं चाहेगा कि उसका विरोधी धार्मिक मुद्दे पर जेल जाए और अगले चुनाव में इसे मुद्दा बनाकर सामने वाले के लिए मुश्किल खड़ी कर दे।
इन दिनों, स्वास्थ्य मंत्री के सितारे बुलंदी पर हैं। विधानसभा चुनाव से ही उन्होंने जो रणनीति बनाई सबमें कामयाब रहे। सियासत में चाणक्य कहे जाने वाले जमशेदपुर पूर्वी के विधायक सरयू राय ने भाजपा छोड़ी तो बन्ना के लिए जमशेदपुर पश्चिम का सियासी मैदान खाली हो गया। यही नहीं बन्ना ने पिछले चुनाव की तरह इस बार कोताही नहीं बरती। खाली मैदान होते हुए भी उन्होंने एड़ी चोटी का जोर लगाया और बड़े राजनीतिक विश्लेषकों से सलाह मशवरा कर हिंदू वोटों में भी सेंधमारी की। उनका चुनावी प्रचार मंदिरों से शुरू होता था। मुस्लिम इलाके में चुनाव प्रचार की कमान अपने साथियों के कांधे पर छोड़ रखी थी। हालांकि इक्का- दुक्का सभाएं उन्होंने चुनाव के अंत में कीं। इसका उन्हें फायदा मिला। मुस्लिम वोट तो उनके झोली में था ही हिंदू वोट हथिया कर उन्होंने जमशेदपुर पश्चिम की सीट पर अपना परचम लहराया। इलाके के लोग स्वास्थ मंत्री के कामकाज से संतुष्ट हैं। उन्होंने भाजपा की हिंदू मुस्लिम राजनीति का भी तोड़ निकाल लिया है। उनके इलाके के दोनों पक्ष उनसे खुश हैं। लेकिन, एमजीएम के मुद्दे पर अब तक उनका कोई भी कदम कारगर साबित नहीं हो सका है। एमजीएम अस्पताल में लगातार डॉक्टरों की लापरवाही के चलते लोगों की जान जा रही है। एमजीएम अस्पताल की व्यवस्था सुधरने का नाम नहीं ले रही है। एमजीएम अस्पताल एक ऐसा नासूर है जिसे खत्म करने ‌के लिए आए बड़े सियासी नेता अब भूतपूर्व हो चुके हैं । पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने भी एमजीएम अस्पताल सुधारने की कोशिश की थी। लेकिन कामयाबी नहीं मिली। इसके पीछे ठेकेदारी और सबको साथ ले कर चलने की नीति ही घातक साबित होती है। राजनीतिज्ञ सख्ती से काम ले नहीं सकते। यही वजह है कि एमजीएम अस्पताल में सुधार नहीं हो पा रहा है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि अस्पताल में डॉक्टर इलाज करते हैं। यहां ज्यादातर मामले डॉक्टरों की लापरवाही के हैं। डॉक्टर दवा ढंग से नहीं देंगे। मरीज की देखभाल नहीं करेंगे, तो उनकी मौत निश्चित है। अभी स्वास्थ्य मंत्री एमजीएम अस्पताल में सुंदरीकरण का सब्जबाग लोगों को दिखा रहे हैं। लेकिन डॉक्टरों की कार्यप्रणाली सुधारने के लिए पहल करते नहीं दिख रहे हैं। जानकारों का कहना है कि अगर सिर्फ डॉक्टर अपने मरीजों का ध्यान से इलाज करने में जुट जाएं तो एमजीएम की 50 फीसद समस्या हल हो सकती है। कुछ दिन पहले ही पोटका की एक गर्भवती महिला कि पोटका के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में जांच के बाद डाक्टरों ने उसे एमजीएम अस्पताल रेफर किया। वहां जांच में पाया गया कि उसके पेट में बच्चा उल्टा है। लेकिन एमजीएम अस्पताल में डॉक्टरों ने जांच नहीं की और उसे वापस सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भेज दिया। रास्ते में प्रसव हुआ और बच्चे की मौत हो गई। इस नवजात शिशु की मौत का कलंक एमजीएम अस्पताल के डॉक्टरों पर ही है। दरअसल एमजीएम अस्पताल के कई निजी नर्सिंग होम में भी अपनी सेवा देते हैं। ज्यादातर डॉक्टर अस्पताल से गायब रहते हैं। ऐसे में नर्स ही देखभाल करती हैं। यही वजह है कि जब मरीज गंभीर हालत में होते हैं और उनके परिजन दौड़ कर डॉक्टर को बुलाने जाते हैं। वहां डॉक्टर उपलब्ध नहीं रहते।

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