क्या अपने खोए साम्राज्य पर दोबारा परचम फहरा सकेंगे इंद्रजीत
मंझनपुर सीट पर किसानों की नाराजगी झेल रही भाजपा
न्यूज़ बी रिपोर्टर, मंझनपुर : कौशांबी जिले की मंझनपुर विधानसभा सीट पर इस बार मुकाबला काफी दिलचस्प है। पूर्व में बसपा के मिनी मुख्यमंत्री के नाम से चर्चित इंद्रजीत सरोज इस सीट पर बसपा प्रत्याशी के तौर तीन बार अपनी जीत का परचम लहरा चुके हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में उन्हें मोदी लहर में भाजपा के लाल बहादुर के सामने पराजय का स्वाद चखना पड़ा था। मंझनपुर विधानसभा सीट दलित बाहुल्य सीट मानी जाती है। इस सीट पर दलित वोटरों का वर्चस्व है। इंद्रजीत सरोज जिस बिरादरी से आते हैं। उसकी संख्या भी काफी अधिक है। इसलिए वर्तमान विधानसभा चुनाव में इंद्रजीत सरोज का पल्ला भारी है। यही नहीं इंद्रजीत सरोज को इस सीट पर 2017 के चुनाव से पहले हमेशा सपा टक्कर देती थी। मुस्लिम वर्ग सपा का वोट बैंक माना जाता है। इस बार इंद्रजीत सरोज बसपा छोड़कर सपा वाली साइकिल की सवारी कर रहे हैं। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि दलित और मुसलमानों का गठजोड़ का फायदा इंद्रजीत सरोज को मिलेगा। दूसरी तरफ, भाजपा को इस सीट पर भी किसानों की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है मंझनपुर विधानसभा सीट पर करारी और मंझनपुर कस्बे को छोड़ दें तो पूरे इलाके में किसान वोटर ही हैं। ये किसी न किसी तरह खेती से जुड़े हुए हैं। या तो खेतिहर किसान है या फिर खेत में काम करने वाले मजदूर हैं। किसान आंदोलन को लेकर भाजपा की जो किरकिरी हुई है, उसका प्रभाव मंझनपुर विधानसभा सीट पर साफ दिखाई देता है। बसपा अपने जनाधार को साधने की कोशिश में ही हाथ पैर मार रही है। इंद्रजीत सरोज बसपा से ही अब तक जीतते आए हैं और उनके सपा में जाने से बसपा का जनाधार खिसक कर उनके पाले में आ गया है। मंझनपुर विधानसभा सीट कभी कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी। 1977 में जनता पार्टी के नाथूराम शिक्षक की जीत को छोड़ दें तो यहां से हमेशा कांग्रेस के उम्मीदवार ही जीते थे। कांग्रेस के ईश्वर शरण विद्यार्थी 1980, 1985 और 1989 में ईश्वर शरण विद्यार्थी लगातार इस सीट पर कांग्रेस का परचम लहराते रहे हैं। 1991 में यहां से जनता दल के भगवंत प्रसाद जीते थे। भगवंत प्रसाद की जीत मंझनपुर की राजनीति में टर्निंग प्वाइंट मानी जाती है। इसके बाद से कांग्रेस इस सीट पर जीत के लिए तरसती रही है। इसके बाद हुए अगले चुनाव में 1996 में बसपा ने इस सीट पर जीत हासिल की थी। बसपा के उम्मीदवार इंद्रजीत सरोज ने अपने प्रतिद्वंद्वी भाजपा के वाचस्पति को 10952 मतों से हराया था। इसके बाद 2002 में इंद्रजीत सरोज ने सपा के शिव मोहन चौधरी को 2007 में, सपा के सुरेश पासी को 2012 में इंद्रजीत सरोज ने फिर सपा के शिव मोहन चौधरी को इस सीट से धूल चटाई थी। इंद्रजीत सरोज इस सीट पर मजबूत उम्मीदवार बनकर उभरे थे। लेकिन 2017 में चली मोदी लहर के आगे उन्हें भी भाजपा के लाल बहादुर से मात खानी पड़ी थी। इंद्रजीत सरोज भी मंजे सियासत दान माने जाते हैं। उन्होंने पिछले चुनाव की समीक्षा की तो पता चला कि अगर उन्हें मुस्लिम वोट मिल जाए तो अगले चुनाव में उनकी जीत पक्की होगी। इस को ध्यान में रखते हुए और बसपा सुप्रीमो से अनबन के चलते इंद्रजीत ने पाला बदल लिया। अब वह सपा के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे। इसका उन्हें फायदा भी मिल रहा है। इससे उनका जनाधार बढ़ा है। दलित वोट बैंक उनके पास पहले से था। साल 2017 के चुनाव में उन्होंने 88658 मत हासिल किए थे। जबकि, सपा के हेमंत कुमार टुन्नू को 33717 मत मिले थे। लाल बहादुर को 92818 मत मिले थे और वह महज 4160 मतों से ही जीते थे। यह अंकगणित भी इंद्रजीत सरोज के पक्ष में है। इंद्रजीत सरोज को इस बार सपा का 33000 वोट अगर मिल गया तो वह आसानी से इस सीट पर अपनी जीत हासिल कर अपने खोए साम्राज्य को दोबारा हासिल कर सकेंगे।