पैगंबर हज़रत मोहम्मद मुस्तफा के नवासे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की वेलादत पर जमशेदपुर में हर तरफ खुशी की धूम, जाकिर नगर में हुई महफिल
जमशेदपुर: पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के नवासे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की वेलादत पर जमशेदपुर में खुशी की धूम है। लोगों ने अपने घरों में नज़र व नियाज़ की। मानगो के ज़ाकिर नगर में इमाम बारगाह हजरत अलैहिस्सलाम में महफ़िल का आयोजन किया गया। इस
महफ़िल में स्थानीय शायरों ने कसीदा खानी की। महफिल का संचालन पेश इमाम मौलाना ज़की हैदर साहब ने किया। उन्होंने पढा कि – आप क्यों कतरा रहे हैं परचमे अब्बास से, क्या तमाचा याद आ जाता है पंजा देख कर। मेरे आंसु आंसुओं से ये वसीयत कर गए, आंख से गिरना मगर रूमाल ए ज़हरा देख कर। अफसर हसनैन ने पढ़ा- जिसके साए में कायनात बनी, ऐसा नाना मेरे हुसैन का है। शाकिर ने पढा- वह था सिफ्फीन का ये कर्बला का अब्बास हुआ, एक किरदार जो दो बार नमूदार हुआ। मातमे शब्बीर सबकी किस्मत में नहीं, जिसको ज़हरा ने दुआ दी वह अज़ादार हुआ। शाकिर ने ‘अचानक’ के काफिया पर उम्दा अशआर पढे। उन्होंने पढा-ये आलम ए अनवार में हो जाते हैं तैयार, पैदा नहीं होते हैं अज़ादार अचानक। वसी ने पढा- ज़ालिम बहुत ही खुश था सिना पर चढा के सर, बातिल समझ रहा था कि मिट जाएगी नमाज़, शब्बीर ने सारे जहां में मुसल्ला बिछा दिया।
मूसब ने पढा- दिल ठिकाना मेरे हुसैन का है, तुम जिसे आसमां समझते हो, शामियाना मेरे हुसैन का है। इनाम अब्बास ने पढा – बातिल के आगे जो न झुकाए अपना सर, समझो कि उसके ज़ेहन का मालिक हुसैन है। आशकार ने पढ़ा – अश्क की राह तबस्सुम की गुज़रगाह भी है। किस क़दर सूखे गले का रन में हमला हो गया, खंजरों की जान जाने का खतरा हो गया। महफ़िल का आयोजन मोहम्मद राशिद की तरफ से किया गया।