जमशेदपुर : अखिल भारतीय संताली लेखक संघ ने भुवनेश्वर में ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चंद्र मांझी को ज्ञापन सौंप कर मांग की है कि दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो समेत अन्य मीडिया प्लेटफॉर्म पर संताली भाषा ( Santhali Language) में समाचार पेश किए जाएं। ताकि राष्ट्रीय स्तर पर संथाली को पहचान मिल सके और संताली भाषा का विकास हो। इसके अलावा, संताली भाषा को बढ़ावा देने के लिए अन्य मांगों को लेकर एक ज्ञापन मुख्यमंत्री मोहन चंद्र मांझी को सौंपा गया है।
ज्ञापन में कहा गया है कि संताली भारत की सांस्कृतिक और साहित्यिक विरासत का एक महत्वपूर्ण घटक है। संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल संताली भाषा लाखों लोग बोलते हैं। मयूरभंज जिले समेत अन्य इलाकों में इस भाषा ( Santhali Language) की मजबूत पकड़ है। गुरू गोमके पंडित की सांस्कृतिक विरासत में संथाली भाषा निहित है। मयूरभंज के ही निवासी रघुनाथ मुर्मू ने 1925 में ओलचुकी लिपि का आविष्कार किया था। ज्ञापन में मांग की गई है कि संताली भाषा को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए। आदिवासी बहुल क्षेत्र में संताली भाषा को शामिल करते हुए ओलचिकी लिपि को भी सम्मिलित किया जाए।
Santhali Language में हो अकादमी की स्थापना
संताली भाषा अकादमी की स्थापना, संताली भाषा के लेखकों को प्रोत्साहित करने के लिए फेलोशिप, वित्तीय सहायता और पुरस्कार की योजनाएं शुरू हों। आदिवासी इलाकों में संताली साहित्य की पहुंच बनाने के लिए पुस्तकालय, सांस्कृतिक केंद्र और संसाधन केंद्र स्थापित हों। सरकारी संचार, साइनेज और शिक्षा सामग्री में संताली को महत्व दिया जाए। साहित्यिक उत्सव, कार्यशाला और सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए धन और संसाधन मुहैया कराया जाए। मेमोरैंडम देने वालों में साहित्य अकादमी संताली सलाहकार बोर्ड व संघ के अध्यक्ष लक्ष्मण किस्को, अकादमी संताली सलाहकार बोर्ड व संघ के महासचिव रवींद्र नाथ मुर्मू आदि रहे।
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रत्न है संथाली साहित्य की विविधता
संघ के महासचिव रवींद्रनाथ मुर्मू ने कहा कि संताली भाषा की विविधता का एक रत्न है। आदिवासी समुदाय के लिए गौरव का स्रोत है। रघुनाथ मुर्मू ने इसके विकास में बड़ा योगदान दिया है। मुख्यमंत्री मोहन चंद्र मांझी ने आश्वासन दिया कि ओडिशा में संताली को बढ़ावा देने के लिए हर कदम उठाया जाएगा।
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ओलचिकी लिपि से तैयार हो रहे रांची यूनिवर्सिटी के विषय
केंद्रीय विश्वविद्यालय रांची में पद्मश्री दमयंती बेसरा के नेतृत्व में कार्यालय का आयोजन किया गया 51 प्रतिभागियों ने भाग लिया 46 विद्वान मौजूद थे इस कार्यशाला में तय हुआ कि विश्वविद्यालय के सभी विषय ओलचिकी लिपि से तैयार किए जाएंगे।