उद्धव ठाकरे को हटाने के लिए एकनाथ शिंदे के साथ गुवाहाटी में डाले हैं डेरा
न्यूज़ बी रिपोर्टर, मुंबई : शिवसेना के बागी विधायक एकनाथ शिंदे का कहना है कि उद्धव ठाकरे ने शिवसेना के सुप्रीमो रहे बाला साहब देवरस ठाकरे की नीति से अलग हटकर कांग्रेस और एनसीपी के साथ चलने का जो तरीका अपनाया है, उससे शिवसेना के विधायक नाराज हैं। बागी खेमे में शिवसेना के मंत्री अब्दुल सत्तार अब्दुल नबी की उपस्थिति एकनाथ शिंदे के इस बयान की पोल खोल रही है। सवाल यह है कि क्या अब्दुल सत्तार अब्दुल नबी भी चाहते हैं कि उद्धव ठाकरे भाजपा के साथ रहकर कड़ी हिंदुत्व वाली नीति अपनाएं। ऐसा नहीं है तो फिर ऐसी क्या बात है कि अब्दुल सत्तार अब्दुल नबी भी उस उद्धव ठाकरे को हटाना चाहते हैं, जिन्होंने उन्हें पांच विभागों का मंत्री बनाया है। अब्दुल सत्तार अब्दुल नबी का एकनाथ शिंदे के गुट में होने के कई मायने निकलते हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह हार्स ट्रेडिंग का मामला हो सकता है। हो सकता है कि कोई महाशक्ति महाराष्ट्र में एन केन प्रकारेण अपनी सरकार बनाना चाहती हैं और इसके लिए उसने अपना खजाना खोल दिया है। अब्दुल सत्तार अब्दुल नबी शिवसेना में 5 विभागों के मंत्री हैं। उद्धव ठाकरे ने उन्हें राजस्व, ग्रामीण विकास, स्पोर्ट्स डेवलपमेंट, खार लैंड एंड डेवलपमेंट और स्पेशल असिस्टेंट के विभाग दिए हैं। अब्दुल सत्तार औरंगाबाद जिले के सिल्लोड विधानसभा क्षेत्र से विधायक शिवसेना के विधायक हैं। अब्दुल सत्तार ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर शिव सेना ज्वाइन की थी। सियासी पंडितों का कहना है
उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद पर नहीं देखना चाहती महाशक्ति
एकनाथ शिंदे ने अपने बयान में जिस महाशक्ति का नाम लिया है, वह महाशक्ति उद्धव ठाकरे को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद पर नहीं देखना चाहती। राजनितिक विश्लेषक कहते हैं कि उद्धव ठाकरे तो चाहते थे कि उनका भाजपा के साथ गठबंधन बना रहे। उन्होंने चुनाव भी भाजपा के साथ ही लड़ा। बस वह यह चाहते थे कि पिछली बार अगर भाजपा के देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री थे तो इस बार उद्धव ठाकरे बन जाएं। भाजपा से उनका गठबंधन बना रहे और उद्धव ठाकरे कड़ी हिंदुत्व वाली लाइन पर चलते रहें। लेकिन यह भाजपा ही थी कि उसने उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाना ठीक नहीं समझा और सिर्फ देवेंद्र फडणवीस व अपनी सरकार की लालच के चलते शिवसेना को कांग्रेस और एनसीपी के पाले में धकेल दिया। उद्धव ठाकरे भी समझ रहे हैं कि जिस कांग्रेस और एनसीपी को उन्होंने जिंदगी भर अछूत समझा मुश्किल में वही काम आई। कड़ी हिंदुत्व वाली पार्टी भाजपा ने तो उद्धव को मुख्यमंत्री के पद पर देखना उचित नहीं समझा। लेकिन, कांग्रेस और एनसीपी ने बालासाहेब ठाकरे जैसे कड़ी हिंदुत्व लाइन अपनाने वाले नेता के पुत्र उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने का जोखिम मोल लिया। कांग्रेस और एनसीपी ने रिस्क उठाकर उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाया जबकि कांग्रेस का अल्पसंख्यक वोट बैंक उसके शिवसेना से तालमेल से नाराज था। इस तरह हालात का विश्लेषण करने पर सारे संकट की दोषी महाशक्ति ही ठहरती है।