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Kudmi Samaj : कुड़मी समाज का एसटी दर्जे की मांग को लेकर महाआंदोलन का एलान

Kudmi Samaj की मीटिंग

20 सितंबर को झारखंड, बंगाल और ओडिशा में 100 जगहों पर होगा रेल रोको आंदोलन

पुरुलिया : मुरगुमा स्थित केनेकेचे पहाड़ में दो दिवसीय कुड़माली नेगाचारि धरम माहाजड़ुआही का 7वां महासम्मेलन संपन्न हुआ। इसमें झारखंड, बंगाल, ओडिशा और असम सहित विभिन्न राज्यों से हजारों कुड़मी समाज (Kudmi Samaj) के लोग शामिल हुए। सम्मेलन में आदिवासी धर्म और कुड़मी आंदोलन को लेकर विस्तृत चर्चा हुई और आगामी आंदोलन के लिए आठ मुख्य बिंदुओं पर सहमति बनी।

Kudmi Samaj की मीटिंग

Kudmi Samaj की मीटिंग

महासभा में मुलखुंटी मूल मानता अजीत प्रसाद महतो ने इन सभी बिंदुओं को औपचारिक रूप से घोषित किया। केंद्रीय अध्यक्ष शशांक शेखर महतो, डॉ. सुजीत कुमार महतो, और झारखंड प्रदेश अध्यक्ष पद्मलोचन महतो जैसे प्रमुख नेताओं की उपस्थिति में यह निर्णय लिया गया।

इसे भी पढ़ें – कुड़मी जाति को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग को लेकर झाड़ग्राम के अलावा चाकुलिया व चांडिल समेत कई जगह रेल चक्का जाम, ट्रेनों का परिचालन ठप

आंदोलन के मुख्य बिंदु

2025 की जनगणना में कुड़मी समाज  ( Kudmi Samaj ) अपनी मातृभाषा के स्थान पर “कुड़मालि”, जाति के स्थान पर “कुड़मी” और धर्म के स्थान पर “आदिवासी धर्म” या “एनिमिज्म” लिखेगा।
यदि जाति आधारित जनगणना नहीं हुई तो इसका विरोध किया जाएगा। कुड़मी समाज के सभी धार्मिक और सामाजिक कार्यों में ब्राह्मण निषेध रहेगा। सभी संस्कार और पूजा कुड़मालि नेगाचारि विधि से ही किए जाएंगे। दहेज प्रथा का पूरी तरह से विरोध होगा।
जो विधायक और सांसद कुड़मी समाज की मांगों को विधानसभा और संसद में नहीं उठाएंगे, उनके खिलाफ प्रदर्शन किया जाएगा। बंगाल सरकार के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएंगे क्योंकि ममता सरकार ने 2017 से कुड़मी समाज के “कमेंट एंड जस्टिफिकेशन” को रोका हुआ है।
25 मार्च 2025 को एसटी, धर्म कोड, और कुड़माली भाषा की मांग को लेकर डीआई ऑफिस का घेराव होगा।
20 सितंबर 2025 को झारखंड, बंगाल और ओडिशा में 100 जगहों पर रेल रोको आंदोलन किया जाएगा।

Kudmi Samaj का स्पष्ट एजेंडा

महासम्मेलन में कुड़मी समाज ने यह संदेश दिया कि वे अपनी एसटी मांग (ST Demand), कुड़माली भाषा (Kudmali Language) और आदिवासी धर्म कोड (Tribal Religion Code) को लेकर कोई समझौता नहीं करेंगे। समाज की एकता और अधिकारों की लड़ाई में यह आंदोलन ऐतिहासिक साबित हो सकता है।

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