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यूपी चुनाव में कैराना में फंसी बीजेपी, गृहमंत्री को खुद संभालना पड़ा मोर्चा

कैराना से सपा विधायक नाहिद हसन की बहन मैदान में उतरीं, फूले बीजेपी के हाथ पांव
भाई के जेल जाने के बाद संभालेंगी चुनाव प्रचार की बागडो

न्यूज़ बी रिपोर्टर, कैराना : उत्तर प्रदेश के चुनाव में कैराना विधानसभा सीट भाजपा के गले की फांस बनती जा रही है। इस सीट पर भाजपा उम्मीदवार को जिताने को अब गृह मंत्री अमित शाह खुद उतर आए हैं। गृह मंत्री के उतरने से पूरी प्रशासनिक मशीनरी उनके साथ लग गई है। कैराना विधानसभा सीट भाजपा के लिए नाक का सवाल बन गई है।‌ यही वजह है कि गृह मंत्री अमित शाह ने कैराना से चुनाव की प्रचार की शुरुआत की। यही नहीं वह कैराना की गलियों में घूमे और लोगों से हाथ जोड़कर वोट भी मांगे। अगर भाजपा यह सीट हारती है तो सीधे गृह मंत्री अमित शाह की साख पर बट्टा लगेगा। इसलिए भाजपा ने इस सीट पर साम, दाम, दंड और भेद सब अपनाने का फैसला लिया है। अगर इस सीट पर सपा जीतती है तो इससे नाहिद हसन और उनका परिवार उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि विश्व पटल पर विजेता के रूप में उभरेंगे।

उत्तर प्रदेश के शामली की कैराना विधानसभा का चुनाव काफी रोचक होने जा रहा है। उत्तर प्रदेश ही नहीं विश्व भर के राजनीतिक एक्सपर्ट की निगाहें इस चुनाव पर टिक गई हैं। यह चुनाव भाजपा हिंदू मुसलमान के मुद्दे पर लड़ने का फैसला कर चुकी है। इसके लिए रणभेरी बज गई है। गृह मंत्री अमित शाह कथित पलायन के मुद्दे पर यहां चुनाव लड़ने जा रहे हैं। दूसरी तरफ, सपा विधायक नाहिद हसन के जेल में जाने के बाद उनकी बहन इकरा हसन के चुनाव मैदान में उतर जाने से भाजपा के रणनीतिकारों के हाथ-पैर फूल गए हैं। माना जा रहा है कि सपा से नाहिद हसन ही चुनाव लड़ेंगे। लेकिन, अगर किसी भी तरह की कोई तकनीकी दिक्कत आती है तो एकरा हसन आगे आकर मोर्चा संभाल लेंगी। यही नहीं, नाहिद हसन के चुनाव लड़ने पर इकरा हसन के हाथ में चुनाव प्रचार की बागडोर होगी।
इकरा हसन जहां काफी बुद्धिजीवी मानी जा रही हैं, वहीं पर्सनालिटी में भाजपा के पूर्व सांसद हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह पर भी भारी पड़ रही हैं।
कैराना विधानसभा की सीट उत्तर प्रदेश के शामली जिले में है। यहां 10 फरवरी को मतदान होना है। कैराना का हर शख्स इस गुणा गणित में लगा है, कि 10 मार्च को जब मतगणना होगी तो जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा। साल 2017 में समाजवादी पार्टी के नाहिद हसन ने भाजपा की वर्तमान उम्मीदवार मृगांका सिंह को 21 हज़ार 162 वोटों से हराया था। इसीलिए, राजनीतिक पंडित इस चुनाव में भी इकरा हसन को मजबूत प्रत्याशी मान रहे हैं। पिछले चुनाव में नाहिद हसन को 98 हज़ार 830 वोट मिले थे। जबकि, मृगांका सिंह को महज 77 हज़ार 668 वोट से संतोष करना पड़ा था। पिछले, विधानसभा चुनाव में सपा और रालोद अलग-अलग चुनाव लड़े थे। इस बार रालोद और सपा का गठबंधन है। रालोद के उम्मीदवार को साल 2017 में 19 हज़ार 992 वोट मिले थे। इस बार माना जा रहा है कि एकरा हसन को रालोद का भी समर्थन मिलेगा। राजनीतिक सूत्र बताते हैं कि इस सीट पर भाजपा को पटखनी देने के लिए सपा मास्टर स्ट्रोक चलने जा रही है। यह मास्टर स्ट्रोक क्या है। यह मतगणना के दिन ही पता चलेगा। भाजपा के खिलाफ इलाके के कई बुद्धिजीवी नेता सक्रिय हो गए हैं। क्योंकि, लोग हिंदू मुस्लिम की सियासत से तंग आ चुके हैं।
इकरा हसन जिस आत्मविश्वास के साथ पलायन के मुद्दे पर भाजपा को ही घेरे में खड़ा कर रही हैं। उससे हिंदू वोट भी प्रभावित हो रहे हैं। इकरा हसन कहती हैं कि भाजपा का पलायन का मुद्दा हवा हवाई है। जिनके पास जरा सी भी अक्ल है, वह जानता है कि अगर ऐसा हुआ है तो इसके पीछे भाजपा के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ व गृह मंत्री अमित शाह दोषी हैं। सरकार क्या कर रही थी। कैराना के एक मुस्लिम रणनीतिकार सलमान नफीस कहते हैं कि कैराना में मौजूद आबादी और यहां की डेमोग्राफी चीख चीख कर चिल्लाती है कि भाजपाई झूठ बोल रहे हैं। कैराना के ही कारोबारी रमेश कुमार का कहना है कि एडोल्फ हिटलर कहा करता था कि एक झूठ को सौ बार बोलो तो वह सही लगता है। भाजपा हिटलर के फार्मूले पर चल रही है।वही कैराना की राजनीति में हो रहा है। कोरोना काल में कैराना में लोग मर रहे थे। कोई पूछने नहीं आया। भाजपा की सरकार है, दंगों के दोषियों को बचा लिया गया और किसी पर फर्जी मुकदमे लाद कर जेल भेज दिया गया। यह जनता अच्छे तरीके से जानती है। कैराना के सुशील कुमार कहते हैं यहां का चुनाव एक बार फिर दिलचस्प होने जा रहा है। भाजपा की जात पात की विचारधारा यहां परवान नहीं चढेगी। यहां के लोग जागरूक हैं, और समझते हैं कि भाजपा सिर्फ धर्म के आधार पर लोगों को बेवकूफ बनाती है। अगर रोटी रोजगार नहीं मिलेगा तो लोग कैसे जिंदा रहेंगे। धर्म का मुख्य मुद्दा जनता को बचाना है। जनता रहेगी तभी धर्म है। कैराना के राजू कुमार का कहना है कि साल 2014 में भाजपा के नेता महंगाई महंगाई चिल्लाते थे। अब वह किस तरह गिरगिट की तरह रंग बदल रहे हैं। महंगाई का नाम सुनते ही ऊल जुलूल की बातें कर जिस तरह जनता को बेवकूफ बना रहे हैं। वह पब्लिक सब समझ रही है।

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