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जमशेदपुर संसदीय क्षेत्र : महतो उम्मीदवार ही पार लगा सकता है इंडिया गठबंधन की सियासी नाव

तहज़ीब फातमा, जमशेदपुर: इस बार झारखंड में लोकसभा चुनाव दिलचस्प सियासी सूरत अख्तियार कर रहा है। इंडिया गठबंधन लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराने के लिए कमर कस रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद झामुमो भी खार खाए बैठी है और किसी भी कीमत पर लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराकर बदला लेने की फिराक में है। झामुमो और कांग्रेस के सियासी पंडित ऐसी चाल चलने के लिए कमर कस रहे हैं कि जमशेदपुर लोकसभा सीट के सियासी दंगल में भाजपा को मात दी जा सके। कांग्रेस और झामुमो का शीर्ष नेतृत्व यह समझ गया है कि अगर भाजपा को हराना है तो महतो उम्मीदवार की तलाश करनी होगी। राजनीतिज्ञों का आकलन है कि यही वजह है कि कांग्रेस ने जमशेदपुर संसदीय सीट से अपना दावा छोड़ने को तैयार है। हालांकि अभी सीटों के बंटवारे का ऐलान नहीं हुआ। लेकिन सियासी गलियारे में चर्चा है कि जमशेदपुर संसदीय सीट झामुमो की झोली में रहेगी। क्योंकि कांग्रेस के पास ऐसा कोई दमदार महतो प्रत्याशी नहीं है जिसे मैदान में उतार कर जीत हासिल की जा सके। हालांकि, कांग्रेस का एक धड़ा जमशेदपुर लोकसभा सीट पर अपना दावा बरकरार रखे हुए है। इस धड़े का मानना है कि अगर जमशेदपुर पश्चिम के विधायक स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता को टिकट दिया जाए तो वह भाजपा के वोट बैंक में सेंध मारी कर सकते हैं। मुस्लिमों के अलावा मारवाड़ियों में भी बन्ना गुप्ता की पैठ है। लेकिन कांग्रेस के बड़े नेता कोई रिस्क नहीं लेना चाहते। इसलिए वह भी चाहते हैं कि भले ही जमशेदपुर सीट पर झामुमो जीते लेकिन किसी तरह भाजपा को हराया जाए। इसीलिए जमशेदपुर लोकसभा सीट से दमदार महतो उम्मीदवार की तलाश है। कांग्रेस के पास ऐसा कोई महतो उम्मीदवार नहीं है। यही वजह है कि कांग्रेस भी इस सीट पर झामुमो को आगे रखना चाहती है। झामुमो में उम्मीदवारी की रेस में आस्तिक महतो और सुमन महतो हैं। इसमें आस्तिक महतो का पलड़ा भारी बताया जा रहा है। सुमन महतो भी यहां की पूर्व सांसद रह चुकी हैं। लोकसभा संसदीय सीट पर एक तरह से महतो मतों की जागीरदारी है। साल 1989 से अब तक आठ बार महतो उम्मीदवार इस लोकसभा सीट पर विजय प्राप्त कर चुके हैं। 1989 में सबसे पहले शैलेंद्र महतो जीते थे। 2 साल बाद हुए चुनाव में फिर शैलेंद्र महतो को ही जीत हासिल हुई। हालांकि 1996 के चुनाव में भाजपा के नितीश भारद्वाज ने उन्हें हरा दिया था। नितीश भारद्वाज महाभारत के सीरियल में कृष्ण का रोल कर चुके थे। इसलिए उनका एक अपना ग्लैमर था। जिसके चलते कोई जातीय कार्ड नहीं चला। सभी ने एकजुट होकर नितीश भारद्वाज को वोट दिया था। हालांकि अगले चुनाव में आभा महतो ने जीत का झंडा बुलंद किया। दो बार आभा महतो जमशेदपुर से सांसद रहीं। इसके बाद साल 2004 के चुनाव में सुनील महतो सांसद बने। साल 2007 में सुनील महतो की हत्या के बाद हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी सुमन महतो ने चुनाव जीता। साल 2009 में महतो उम्मीदवार चुनाव हार गए। अर्जुन मुंडा ने चुनाव जीता। इसके बाद साल 2011 में हुए उपचुनाव में झारखंड विकास मोर्चा के डॉक्टर अजय ने जीत हासिल की। डॉक्टर अजय की जीत के पीछे भी उनका ग्लैमर रहा। डॉक्टर अजय जमशेदपुर के एसपी रह चुके थे और शहर के गैंगस्टर व बदमाशों को चुन चुन कर खत्म किया था। इसके चलते यहां की जनता उनसे काफी खुश थी। यही वजह है कि साल 2011 के उपचुनाव में कोई जातीय समीकरण नहीं चल पाया और डॉक्टर अजय चुनाव जीते। लेकिन साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जातीय कार्ड खेलते हुए महतो उम्मीदवार विद्युत वरण महतो को आगे किया। भाजपा अपने चाल में कामयाब रही। विद्युत वरण महतो ने डॉक्टर अजय कुमार को पटखनी दे दी। साल 2019 के चुनाव में झामुमो ने झारखंड टाइगर कहे जाने वाले चंपई सोरेन को मैदान में उतारा। लेकिन, वह भी महतो मतों के आगे कोई करिश्मा नहीं दिखा सके।

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