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हरियाणा की तर्ज पर झारखंड में क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट लागू करने की मांग

हरियाणा की तर्ज पर झारखंड में क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट लागू करने की मांग

न्यूज़ बी रिपोर्टर, रांची :
झारखंड आईएमए के डाक्टरों ने हरियाणा की तर्ज पर क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट लागू करने की मांग की है। आईएमए झारखंड के सचिव डॉ प्रदीप सिंह ने बताया कि अन्य राज्यों में कि मुंबई और दिल्ली की तर्ज पर झारखंड में भी इस एक्ट को लागू कर दिया गया है जिसका सीधा प्रभाव यहां की गरीब जनता पर पड़ रही है। एक्ट के लागू होने से जो इलाज पहले 5000 में हो जाता था उसके लिए अब मरीजों को दो से चार लाख तक खर्च करना पड़ रहा है। अगर एक्ट में संशोधन नहीं होता है तो राज्य के कई छोटे क्लीनिक व नर्सिंग होम बंद हो सकते हैं। कॉर्पोरेट हॉस्पिटलों में मरीजों को जो इलाज में खर्च आ रहा है वही स्थिति अब इन छोटे नर्सिंग होम में दिख रहा है। उन्होंने बताया कि इसके अलावा राज्य में मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट अभी तक लागू नहीं किया गया है सरकार सिर्फ इस एक्ट को लेकर अभी तक चिंतन कर रही है जबकि 22 राज्यों में यह एक्ट लागू है।
आईएमए के प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर एके सिंह ने बताया कि छोटे अस्पतालों को इस एप्स एक्ट से राहत देने के लिए संशोधन बेहद जरूरी है। इसे लेकर आइएमए ने राज्य सरकार से मांग की है कि वह 50 बेड वाले नर्सिंग होम या अस्पतालों को इस एक्ट से मुक्त रखें ताकि मरीजों को सस्ती दर पर इलाज मिल सके। आज इस मौके पर राज्य के विभिन्न जी लो से डॉक्टर पहुंचे थे और इस मुद्दे को लेकर डॉक्टरों ने लंबी बैठक भी आयोजित की।
वहीं आईएमए महिला विंग की अध्यक्ष डा भारती कश्यप ने बताया कि सरकार जहां छोटे उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिए उनके स्टार्टअप के लिए विशेष लोन की व्यवस्था की सुविधा दे रही है वहीं दूसरी ओर युवा डाक्टरों के स्टार्टअप को क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट के द्वारा प्रोत्साहित करने की बजाए उसे खत्म किया जा रहा है और उन्हें कॉरपोरेट अस्पतालों में काम करने के लिए बाध्य किया जा रहा है। इसमें आम जनता का यह नुकसान है कि युवा प्रशिक्षित डाक्टर की छोटी क्लीनिक में इलाज बड़े कॉर्पोरेट हस्पताल की अपेक्षा सस्ता और अच्छा हो रहा है।
एकल क्लिनिक, डाक्टर दंपति द्वारा चलाए जा रहे छोटे अस्पतालों के लिए एक्ट का शत- प्रतिशत पालन करना संभव नहीं है। आईएमए ने हरियाणा की तर्ज पर 50 शैय्या वाले अस्पतालों के छूट को झारखंड में भी लागू करने की मांग की है। इसके अलावा बड़े अस्पतालों को भी पूर्ण अर्हताओं के अनुपालन के लिए पांच साल की शिथिलता अवधि बढ़ाने की मांग की है। इसके अलावा पारा मेडिकल कर्मियों की भारी कमी हो देखते हुए पहले की तरह अस्पतालों द्वारा निर्गत प्रमाण पत्र को योग्यता प्रमाण पत्र के तौर पर स्वीकार किया जाए। इसके साथ ही निजी स्वास्थ्य संस्थाओं के मानक का निर्धारण समतुल्य सरकारी संस्थाओं के अनुरूप किया जाए।

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