News Bee : ( Fule Film) केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के जीवन पर बनी फिल्म ‘फुले’ की जोरदार सराहना की है। 1 मई 2025 को मुंबई में आयोजित एक विशेष स्क्रीनिंग के दौरान उन्होंने इस फिल्म को सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण बताया। अठावले ने कहा कि यह फिल्म हर भारतीय को देखनी चाहिए, खासकर सांसदों और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जैसी प्रमुख हस्तियों को। उन्होंने फिल्म को पूरे देश में टैक्स-फ्री करने की भी मांग रखी है। (Fule Film)
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Fule Film : फुले की प्रेरणादायक कहानी
25 अप्रैल 2025 को रिलीज हुई ‘फुले’ एक बायोग्राफिकल फिल्म है जो 19वीं सदी के दो महान समाज सुधारकों, महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले की कहानी बयां करती है। यह फिल्म जातीय भेदभाव, शिक्षा का अभाव और लैंगिक असमानता के खिलाफ उनके संघर्ष को दर्शाती है। इसका निर्देशन अनंत महादेवन ने किया है। फिल्म में प्रतीक गांधी ने ज्योतिबा फुले और पत्रलेखा ने सावित्रीबाई फुले की भूमिका निभाई है। अन्य प्रमुख कलाकारों में विनय पाठक, सुरेश विश्वकर्मा और दर्शील सफारी शामिल हैं।
Fule Film : अठावले का समर्थन
रामदास अठावले ने फिल्म को देखकर कहा, “यह फिल्म फुले दंपती के योगदान को बेहद सशक्त और संवेदनशील ढंग से प्रस्तुत करती है। समाज के हर वर्ग को इसे देखना चाहिए, ताकि हम सामाजिक समानता की दिशा में उनके विचारों को समझ सकें।” उन्होंने फिल्म को राष्ट्रपति को दिखाने की सिफारिश करते हुए, सरकार से मांग की कि इसे देशभर में टैक्स-फ्री घोषित किया जाए।
निर्देशक ने जताया आभार
निर्देशक अनंत महादेवन ने अठावले के समर्थन को एक बड़ी उपलब्धि बताया। उन्होंने कहा कि फिल्म को पूरी ईमानदारी और समर्पण के साथ बनाया गया है। “हमारी कोशिश रही है कि फुले दंपती की प्रेरक कहानी को नई पीढ़ी तक सच्चाई और संवेदनशीलता के साथ पहुंचाया जाए,” उन्होंने कहा।
रिलीज से पहले उठा विवाद
फिल्म की रिलीज से पहले कुछ समूहों ने इसके जातिगत चित्रण पर आपत्ति जताई थी। हालांकि, रिलीज के बाद फिल्म को दर्शकों और समीक्षकों का सकारात्मक प्रतिसाद मिला। ‘फुले’ न केवल ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि आज के समाज में भी इसके संदेश गूंजते हैं।
प्रोडक्शन और वितरण
‘फुले’ को डांसिंग शिवा फिल्म्स और किंग्समेन प्रोडक्शंस ने मिलकर प्रोड्यूस किया है और इसका वितरण जी स्टूडियोज द्वारा किया गया है। यह फिल्म दर्शकों को 19वीं सदी के भारत की सामाजिक चुनौतियों की गहराइयों में ले जाती है और उन्हें प्रेरित करती है कि वे सामाजिक सुधार की दिशा में सोचें।