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Jamshedpur: जिला व्यवहार न्यायालय के अधिवक्ता कुलविंदर सिंह बोले- कोई अदालत सिख को परिभाषित नहीं कर सकती, सरनेम पर जम्मू एवं कश्मीर हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति की टिप्पणी का मामला

जमशेदपुर: जिला व्यवहार न्यायालय के अधिवक्ता कुलविंदर सिंह ने कहा कि दुनिया की कोई भी अदालत सिख को परिभाषित नहीं कर सकती है। सिख धर्म एक अलग न्यारा धर्म है और इसकी अपनी समृद्ध विरासत, मूल्य, पद्धति, परंपरा और इतिहास है। ऐतिहासिक क्षणों और घटनाओं के आधार पर सिख को परिभाषित किया गया है। सिख वही है जो दस गुरुओं के साथ श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी पर अपनी आस्था और विश्वास रखता है। सिंह और कौर उपनाम का नाम के साथ जुड़ा होना ही सिख की सही और तार्किक पहचान है। उस पर जम्मू एवं कश्मीर उच्च न्यायालय के माननीय न्यायमूर्ति द्वारा यह कहना कि सिख धर्म के व्यक्ति की पहचान के लिए उसके सरनेम में ‘सिंह’ या ‘कौर’ होना जरूरी नहीं है। यह पूरी तरह से संविधान प्रदत्त धार्मिक अधिकार की आजादी पर हमला एवं ऐतिहासिक तथ्यों की अनदेखी है। जस्टिस वसीम सादिक नरगल की एकल पीठ ने अखनूर गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (डीजीपीसी) के चुनाव को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के क्रम में यह टिप्पणी की।
अधिवक्ता कुलविंदर सिंह के अनुसार जम्मू कश्मीर के सेवनिवृत अधिकारी सुखदेव सिंह अखनूर जिला गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी चुनाव में उम्मीदवार बने और हार गए। उन्होंने मतदाता सूची का अवलोकन किया तो पाया कि उसमें कई मतदाताओं के नाम के साथ और एवं सिंह सरनेम नहीं लगा हुआ है। मतदाता सूची और चुनाव में धांधली का आरोप लगाते हुए उन्होंने वैधानिक अपीलीय प्राधिकारी को याचिका दी, वहां से खारिज होने के बाद वह उच्च न्यायालय की शरण में पहुंचे। याचिका में यह भी कहा गया कि गैर-सिखों को शामिल करने से पूरी चुनाव प्रक्रिया खराब हो गई है। जस्टिस वसीम सादिक नरगल ने जम्मू-कश्मीर सिख गुरुद्वारा और धार्मिक बंदोबस्ती अधिनियम, 1973 का जिक्र करते हुए कहा कि “याचिकाकर्ता का तर्क 1973 के अधिनियम में निर्धारित परिभाषा के उलट है। इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। न ही यह कानून की नजर में टिकाऊ है। ऐसे बहुत से लोग हैं, जिनके सरनेम में सिंह या कौर नहीं है, लेकिन फिर भी उन्हें सिख के रूप में पहचाना जाता है, क्योंकि वे सिख धर्म का प्रचार करते हैं। याचिकाकर्ता ने दावों और आपत्तियों के लिए निर्धारित समय सीमा के दौरान मतदाता सूची को लेकर कोई आपत्ति नहीं उठाई थी। पूरी चुनाव प्रक्रिया में शामिल होने के बाद ऐसे मुद्दों को उठाने की अनुमति नहीं थी। याचिकाकर्ता आपत्तियां दर्ज करने और चुनाव में भाग लेने का मौका लेने में असफल रहा। असफल होने पर याचिका दायर की है, जो मेंटेनेबल नहीं है। अधिवक्ता कुलविंदर सिंह के अनुसार याचिकाकर्ता ने समय पर आपत्ति तर्ज नहीं कि उसके लिए कोर्ट अपनी टिप्पणी कर सकता था या मामला खारिज कर सकता था परंतु कोर्ट को सिख को परिभाषित करने का अधिकार कहीं से भी नहीं है। उन्होंने जम्मू एवं कश्मीर के राज्यपाल से इस मामले में पहल करते हुए इसके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने का आग्रह किया है। वही कुलविंदर सिंह ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रधान अधिवक्ता स धामी से भी अपील की है कि वह इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में लेकर जाएं।

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