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RANCHI : ओवैसी के मांडर पहुंचने पर बदले सियासी समीकरण, कांग्रेस का हो सकता है नुकसान


यहां कांग्रेस और बीजेपी के बीच है मुकाबला, मुस्लिम वोट खिसके तो घाटे में रहेगा महागठबंधन

न्यूज़ बी रिपोर्टर, रांची :
मांडर विधानसभा उपचुनाव को लेकर सियासी दलों की सरगर्मी तेज है। एआईएमआईएम के सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी रविवार को मांडर विधानसभा पहुंचे और अपनी पार्टी के उम्मीदवार देव कुमार धान के पक्ष में चुनाव प्रचार किया। मांडर विधानसभा उपचुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की एंट्री से राजनीतिक समीकरण बिगड़ गए हैं। सियासी पंडितों का मानना है कि रांची की हिंसा में दो मुस्लिम युवकों की मौत के बाद असदुद्दीन ओवैसी की मांडर में इंट्री काफी अहम मानी जा रही है। मुस्लिम तबके में रांची हिंसा में दो मुस्लिम युवकों की मौत के बाद सरकारी अमले के प्रति काफी नाराजगी है। क्योंकि लोगों का कहना है कि पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब पर टिप्पणी करने के मामले में उत्तर प्रदेश में भी प्रदर्शनों के दौरान इतनी सख्ती नहीं हुई। जितनी, झारखंड में बरती गई। यहां 2 प्रदर्शनकारी गोली लगने से मारे गए। जबकि, किसी भाजपा शासित प्रदेश में भी ऐसी घटना नहीं हुई। कहा जा रहा है कि झारखंड में प्रदर्शनकारियों से सबसे कड़ाई से निपटा गया। लोगों का मानना है कि झारखंड में जेएमएम सरकार है। लेकिन गृह विभाग कांग्रेस के पास है। कांग्रेस के कई पावरफुल मिनिस्टर हैं। रांची हिंसा में गोली चलने के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पत्रकारों से बात करते हुए पूरे घटनाक्रम से अनभिज्ञता जाहिर की थी और कहा था कि उन्हें अभी अभी जानकारी मिली है कि कुछ अनहोनी हुई है। इससे यह अर्थ लगाया जा रहा है कि पूरे मामले की मुख्यमंत्री को कोई जानकारी नहीं थी और प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का फैसला किसी अन्य स्तर पर लिया गया था। वह कौन लोग हैं जिन्होंने गोली चलाने का आदेश दिया। क्योंकि, प्रशासनिक मशीनरी के जानकारों का कहना है कि अधिकारी बिना सरकारी तंत्र के इशारे के गोली चलाने का आदेश नहीं दे सकते। पुलिस ने जिस तरह बेखौफ होकर सीधे फायरिंग की उससे मुस्लिम समाज नाराज है। एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी इसी नाराजगी को भुनाने मांडर पहुंचे हैं। उन्होंने मुस्लिम समाज से आह्वान भी किया है कि सरकार को रांची हिंसा में मुस्लिमों के प्रति हुई‌ सख्ती का जवाब वोटिंग से दें।
पशोपेश में हैं मांडर के मुसलमान
अगर लोग असदुद्दीन ओवैसी की बात मानते हैं तो कांग्रेस के लिए यहां काफी मुश्किल खड़ी हो जाएगी। क्योंकि एक वर्ग का मानना है कि मुस्लिम मतदाताओं की स्थिति अब डांवाडोल हो चुकी है। राजनीति के रणनीतिकारों का मानना है कि कांग्रेस को अब इनकी परवाह नहीं रही। मुस्लिम समाज भी कांग्रेस की इस बेरुखी को समझ रहा है। चान्हो के रहने वाले रफीक अहमद कहते हैं कि एआईएमआईएम के बारे में खूब प्रचार है कि वह भाजपा की बी टीम है। लेकिन अब वह एआईएमआईएम को ही वोट देंगे। क्योंकि कोई अन्य राजनीतिक पार्टी मुसलमानों का वोट ही नहीं चाहती। ऐसे में मुसलमानों के पास एआईएमआईएम का दामन पकड़ने के सिवा कोई चारा नहीं है।
रांची हिंसा में अधिकारियों पर कार्रवाई न होने से मुस्लिम समाज नाराज
माना जा रहा है कि 10 जून को इकरा मस्जिद से निकलने के बाद प्रदर्शनकारी डोरंडा गए और डोरंडा से वापस आए। इस दौरान पीछे पीछे उनके साथ पुलिस भी थी। कहीं कोई बवाल नहीं हुआ और जब प्रदर्शनकारी सुजाता चौक की तरफ आगे बढ़ने लगे तो पुलिस ने उन्हें रोका। फिर लाठीचार्ज और पथराव हुआ। इसी के बाद माहौल खराब हुआ था। मुस्लिम बुद्धिजीवियों का मानना है कि अगर पुलिस लाठी चार्ज नहीं करती तो जुलूस शांतिपूर्ण तरीके से ही गुजर जाता। उनका कहना है कि सबको जुलूस निकालने की इजाजत है तो फिर मुस्लिम समाज के साथ ऐसा क्यों नहीं है। लोग सवाल उठा रहे हैं कि रांची हिंसा के मामले में लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है।
कांग्रेस से बंधु तिर्की की बेटी हैं उम्मीदवार
गौरतलब है कि बंधु तिर्की की विधानसभा की सदस्यता रद्द किए जाने के बाद मांडर में विधानसभा उप चुनाव हो रहे हैं। यहां महागठबंधन की तरफ से बंधु तिर्की की बेटी शिल्पी नेहा तिर्की कांग्रेस की उम्मीदवार हैं। यहां 23 जून को मतदान होगा।

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